
Vision
- The Laddevi Sharma Adarsh Sanskrit Mahavidyalaya must be made an illustrious Sanskrit Study Centre (a juncture of ancient and modern) not only in Rajasthan but also in India where students from every corner of India to study and learn.
Mission
- Preserve and Propagate Shastric Tradition: Ensure the preservation and propagation of Shastric traditions by demonstrating their relevance to contemporary issues, as well as their historical significance to involve the study, interpretation, and dissemination of Shastras to highlight their timeless value.
- Enrich Classical and Contemporary Sanskrit Literature: Foster a comprehensive study and enhancement of both classical and modern Sanskrit literature supporting scholarly research, publications, and the creation of new literary works that continue the rich legacy of Sanskrit.
- Interpretation of Shastras: Provide in-depth interpretations of Shastras, with a particular focus on the traditional understanding of the Vedas and Vedangas. Encourage the new generation of scholars to engage in writing and composing new literature that bridges ancient wisdom with contemporary perspectives.
- Preserve Indian Heritage and Culture: Actively safeguard India's vast heritage, traditional knowledge systems, and cultural practices for future generations by documenting, preserving, and promoting various aspects of Indian cultural heritage.
- Manuscript Collection, Preservation and Dissemination: Conduct extensive surveys to collect and preserve Indian manuscripts; publish critical editions of these manuscripts to ensure they are accessible to scholars and the public, fostering a deeper understanding of India's literary and intellectual history.
- Supporting Young Scholars: Providing robust support for young scholars to pursue higher studies in Sanskrit and its allied subjects. Offer scholarships, mentorship programs, and research grants to nurture the next generation of Sanskritists.
- Forum for Scholarly Interaction: Create dynamic forums for interaction between traditional Sanskrit scholars, scientists, and prominent academics from various fields. Encourage interdisciplinary dialogue and collaboration to enrich the study and application of Sanskrit.
- Organise Scholarly Events: Host a range of scholarly events including seminars, conferences, and workshops focused on the science of Sanskrit and related subjects aiming to foster academic discourse, share cutting-edge research, and develop new insights.
- Modern Technology in Sanskrit Studies: Leverage modern technology to develop innovative teaching and research methodologies in Sanskrit by utilizing digital tools and platforms to enhance learning experiences and broaden access to Sanskrit studies.
- Spoken-Sanskrit and Short-Term Courses: Offer a variety of classes in spoken Sanskrit and short-term courses on Sanskrit and allied subjects which will be designed to make Sanskrit accessible to a wider audience and to promote its practical usage.
- International Academic Standards: Establish an advanced academic environment that meets and exceeds international standards for study and research in Sanskrit and develop partnerships with global institutions to facilitate academic exchange and collaboration.
- Awards and Prizes: Institute a range of awards and prizes to recognize and encourage young writers, researchers, and both emerging and renowned scholars in the field of Sanskrit. These awards aim to promote excellence and innovation in Sanskrit studies.
- Foster Extensive Scientific Research: Encourage students to engage in extensive research, focusing on translating, interpreting, and describing Shastras within a modern context of scientific studies providing the resources and support necessary for high-quality research.
- Competitions in Sanskrit: Organise competitions in Sanskrit and related subjects at regional, state, and national levels aiming to stimulate interest in Sanskrit and recognize outstanding talent.
- Development of Classical Sanskrit: Promote the development of classical Sanskrit in alignment with the Indian education policy and contemporary societal needs to ensure that classical Sanskrit continues to thrive and evolve in the modern world.
लक्ष्य :
- लाडदेवी शर्मा आदर्श संस्कृत महाविद्यालय को न केवल राजस्थान में बल्कि भारत में एक प्रतिष्ठित संस्कृत अध्ययन केंद्र (प्राचीन और आधुनिक का संगम) बनाया जाय, जहां भारत के हर कोने से छात्र अध्ययन और ज्ञान प्राप्त कर सकें।
उद्देश्य :
- शास्त्र परंपरा का संरक्षण और प्रचारः समकालीन मुद्दों के साथ-साथ शास्त्रों के अध्ययन, व्याख्या और प्रसार को शामिल करने के लिए उनके ऐतिहासिक महत्व को प्रदर्शित करके शास्त्र परंपराओं के संरक्षण और प्रचार को सुनिश्चित करना ताकि उनके कालातीत मूल्य को उजागर किया जा सके।
- शास्त्रीय और समकालीन संस्कृत साहित्य को समृद्ध करनाः विद्वानों के शोध, प्रकाशनों और संस्कृत की समृद्ध विरासत को जारी रखने वाले नए साहित्यिक कार्यों के निर्माण का समर्थन करने वाले शास्त्रीय और आधुनिक संस्कृत साहित्य दोनों के व्यापक अध्ययन अध्यापन को वृद्धि करना।
- शास्त्रों की व्याख्याः वेदों और वेदांगों की पारंपरिक समझ पर विशेष ध्यान देने के साथ शास्त्रों की गहन व्याख्या करना और बढावा देना। विद्वानों की नई पीढ़ी को लेखन और नए साहित्य की रचना करने के लिए प्रोत्साहित करना जो प्राचीन ज्ञान को समकालीन दृष्टिकोण से जोड़ता है।
- भारतीय विरासत और संस्कृति का संरक्षणः भारतीय सांस्कृतिक विरासत के विभिन्न पहलुओं का दस्तावेजीकरण, संरक्षण और बढ़ावा देकर आने वाली पीढ़ियों के लिए भारत की विशाल विरासत, पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों और सांस्कृतिक प्रथाओं की सक्रिय रूप से रक्षा करना।
- पांडुलिपि संग्रह, संरक्षण और प्रसारः भारतीय पांडुलिपियों को इकट्ठा करने और संरक्षित करने के लिए व्यापक सर्वेक्षण करना; इन पांडुलिपियों के महत्वपूर्ण संस्करणों को प्रकाशित करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे विद्वानों और जनता के लिए सुलभ हों, जिससे भारत के साहित्यिक और बौद्धिक इतिहास की गहरी समझ को बढ़ावा मिले।
- युवा विद्वानों का समर्थनः युवा विद्वानों को संस्कृत और इसके संबद्ध विषयों में उच्च अध्ययन करने के लिए मजबूत समर्थन प्रदान करना। संस्कृतविदों की अगली पीढ़ी को पोषित करने के लिए छात्रवृत्ति, मार्गदर्शन कार्यक्रम और अनुसंधान अनुदान प्रदान करना।
- विद्वानों का ज्ञान आदान प्रदान के लिए मंचः पारंपरिक संस्कृत विद्वानों, वैज्ञानिकों और विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख शिक्षाविदों के परस्पर ज्ञान आदान प्रदान के लिए गतिशील मंच बनाना । संस्कृत के अध्ययन और अनुप्रयोग को समृद्ध बनाने के लिए अंतःविषय संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- विद्वतापूर्ण कार्यक्रमों का आयोजनः संस्कृत विज्ञान और संबंधित विषयों पर केंद्रित सेमिनार, सम्मेलन और कार्यशालाओं सहित कई विद्वानों के कार्यक्रमों का सांझा करना, जिसका उद्देश्य अकादमिक प्रवचन को बढ़ावा देना, अत्याधुनिक अनुसंधान सांझा करना और नई अंतर्दृष्टि विकसित करना है।
- संस्कृत अध्ययन में आधुनिक प्रौद्योगिकीः सीखने के अनुभवों को बढ़ाने और संस्कृत अध्ययन तक पहुंच को व्यापक बनाने के लिए डिजिटल उपकरणों और प्लेटफार्मों का उपयोग करके संस्कृत में नवीन शिक्षण और अनुसंधान पद्धतियों को विकसित करने के लिए आधुनिक तकनीक का लाभ उठाना।
- स्पोकन-संस्कृत और अल्पकालिक पाठ्यक्रमः बोली जाने वाली संस्कृत में विभिन्न प्रकार की कक्षाएं और संस्कृत और संबद्ध विषयों पर अल्पकालिक पाठ्यक्रम प्रदान करना, जिन्हें संस्कृत को व्यापक दर्शकों तथा पाठकों के लिए सुलभ बनाने और इसके व्यावहारिक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन करना और उनके पास पहूंचाना ।
- अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक मानकः एक उन्नत शैक्षणिक वातावरण की स्थापना करना जो संस्कृत में अध्ययन और अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करता हो और अकादमिक आदान-प्रदान और सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए वैश्विक संस्थानों के साथ साझेदारी विकसित करना ।
- पुरस्कार और पारितोषिक: संस्कृत के क्षेत्र में युवा लेखकों, शोधकर्ताओं और उभरते विद्वानों और प्रसिद्ध विद्वानों दोनों को पहचान करवाने और प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कारों और पारितोषिकों की एक शृंखला स्थापित करना जो कि इन पुरस्कारों का उद्देश्य संस्कृत अध्ययन में उत्कृष्टता और नवाचार को बढ़ावा देना है।
- व्यापक वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देनाः छात्रों को व्यापक शोध में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करना, वैज्ञानिक अध्ययन के आधुनिक संदर्भ में शास्त्रों के अनुवाद, व्याख्या और वर्णन पर ध्यान केंद्रित करना, जो उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान के लिए आवश्यक संसाधन और सहायता प्रदान करता है।
- संस्कृत में प्रतियोगिताः संस्कृत में रुचि बढ़ाने और उत्कृष्ट प्रतिभा को पहचानने के उद्देश्य से क्षेत्रीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत और संबंधित विषयों में प्रतियोगिताओं का आयोजन करना ।
- शास्त्रीय संस्कृत का विकासः भारतीय शिक्षा नीति और समकालीन सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप शास्त्रीय संस्कृत के विकास को बढ़ावा देना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शास्त्रीय संस्कृत आधुनिक दुनिया में लगातार फलती-फूलती रहे और विकसित होती रहे ।
दृष्टिः/लक्ष्यम्
- श्रीमतीलाडदेवीशर्मा-आदर्श-संस्कृतमहाविद्यालयः न केवलं राजस्थानराज्यस्य अपितु भारतस्य प्रसिद्धं संस्कृत-अध्ययनकेन्द्रं (प्राचीनार्वाचीनयोः विद्ययोः मेलनस्थानं) भवेत्यत्र भारतस्य प्रत्येककोणेभ्यः छात्राः अध्येतुं शिक्षणाय च आगच्छेयुः ।
उद्देश्यः
- शास्त्रीयपरम्परायाः संरक्षणं प्रसारणं च- समकालीनविषयाणां प्रासङ्गिकमानकैः सह कालातीतमूल्यं प्रकाशयितुं तेषां ऐतिहासिकं महत्त्वं ज्ञापयित्वा शास्त्राणामध्ययनं, व्याख्यानं, प्रसारं च कुर्वन् तेषां परम्पराणां संरक्षणं प्रसारणं च करणीयम्।
- शास्त्रीय-समकालीन-संस्कृत-साहित्यानां समृद्धीकरणम् - शास्त्रीय-आधुनिक-संस्कृत-साहित्ययोः विस्तृतमध्ययनं, विद्वतापूर्णं संशोधनम्, प्रकाशनं, संस्कृतस्य समृद्धां परम्परां अनुवर्तमानानां नूतनानां साहित्यिकानां रचनानां च समर्थनम् ।
- शास्त्राणां व्याख्याः- वेदवेदङ्गानां पारम्परिकावधारण विशेषेन केन्द्रीकृतया शास्त्राणां गहनव्याख्यां प्रददातु। प्राचीनज्ञानं समकालीनदृष्टिकोणैः सह संवाहयितुं नूतनसाहित्यस्य लेखनं रचनां च कर्तुं नूतनान् विद्वांसान् प्रोत्साहयतु।
- भारतीयपरम्परायाः संस्कृतेः च संरक्षणम्- भारतीयपरम्परायाः विविधपक्षाणां अभिलेखनं, संरक्षणं, प्रोत्साहनं च कृत्वा भारतस्य विशालसंस्कृतिपरम्परायाः, पारम्परिकज्ञानव्यवस्थायाः, सांस्कृतिकप्रथानां च कुलोद्भनानां कृते सक्रियसंरक्षणम्।
- पाण्डुलिपिसङ्ग्रहणं, संरक्षणं, प्रसारणं च- भारतीय-पाण्डुलिपिनां सङ्ग्रहणाय संरक्षणाय च विस्तृतं सर्वेक्षणं कृत्वा तेषां पाण्डुग्रन्थाणां विमर्शात्मकमध्ययनं प्रकाशनं च करणीयं येन विदूषां छात्राणामनुसन्धातृणां भारतस्य बौद्धिकानां साहित्यिकानां च इतिहासबोधः संवर्धितः स्यात्।
- युव-विदूषां साहाय्यम् - युव-विदूषां संस्कृते तत्सम्बद्ध-विषयेषु च उच्चाध्ययनार्थं दृढसमर्थनं प्रदातव्यम्। संस्कृतविदां कुलोद्भवानां च पोषणार्थं छात्रवृत्तिः, मार्गदर्शन-कार्यक्रमाः, शोध-अनुदानं च प्रदानम्।
- विदूषां ज्ञानदानाय प्रदानाय च मंचः - पारम्परिक-संस्कृत-विदूषां, वैज्ञानिकानां, विविधक्षेत्रेषु प्रमुख-शिक्षाविदां च मध्ये संवादाय ज्ञानदानाय प्रदानाय च गतिशील-मञ्चानां निर्माणं कर्तुं, संस्कृताध्ययनस्य प्रयोगस्य च समृद्ध्यर्थं अन्तर्विषयसंवादस्य सहयोगस्य च प्रोत्साहनं करणार्थम्।
- विद्वतापूर्णकार्यक्रमाणामायोजनम् - अनेकान् विद्वतापूर्णान् कार्यक्रमान् आयोजयतुं, येषु संस्कृत-विज्ञानस्य विषये केन्द्रितानि चर्चासत्राणि, सम्मेलनानि, कार्यशाळाः च भवितुमर्हन्ति, तथा च तत्सम्बद्धाः विषयाः विद्याविषयक-प्रवचनस्य पोषणं, अत्याधुनिक-संशोधनस्य आदानप्रदानम्, नूतन-अन्तर्दृष्टेः विकासाय च।
- संस्कृताध्ययने आधुनिकप्रौद्योगिकीनां समावेशः - शिक्षणानुभवान् वर्धयितुं तथा संस्कृत-अध्ययनस्य विस्तारार्थं च अंकीयसाधनानां तथा मञ्चानां उपयोगेन संस्कृतभाषायां नवान्वेषीनां शिक्षण-शोधपद्धतीनां विकासाय आधुनिकप्रौद्योगिकीनां उपयोगः करणम् ।
- वाचिक-संस्कृतं तथा स्वल्पकालिकपाठ्यक्रमाः – वाचिक-संस्कृतभाषायां विविधाः कक्षाः तथा च संस्कृतसम्बद्धविषयेषु अल्पकालिकपाठ्यक्रमान् निर्माणं, येन संस्कृतस्य व्यापकत्वं श्रोतृणां व्यवहर्तृणां सौलभ्यं कर्तुं तथा तस्य व्यावहारिकप्रयोगं सर्वत्र प्रवर्धयितुं च परिकल्पना।
- अन्ताराष्ट्रिय-शैक्षणिक-मानम् - संस्कृतभाषायां अध्ययनस्य संशोधनस्य च अन्ताराष्ट्रिय-मानदण्डान् पूरयन्तः अतिक्रमयन्तः च उन्नत-शैक्षणिक-वातावरणस्य स्थापना, तथा च शैक्षणिक-आदानप्रदानस्य सहयोगस्य च सुलभतां कर्तुं वैश्विक-संस्थाभिः सह सहभागित्वस्य विकासः।
- पुरस्काराः पारितोषिकानि च - संस्कृतक्षेत्रे युवलेखकान्, शोधकर्तॄन्, उदयोन्मुखान् प्रख्यातान् विदुषः च अभिज्ञातुं प्रोत्साहयितुं तथा तेषामुत्कृष्टतां नवान्वेषणप्रवर्धनार्थं च अनेकैः विविधैः पुरस्कारैः पारितोषिकैः च सम्मानयितुम्।
- व्यापकवैज्ञानिकिसंशोधननिमित्तं प्रोत्साहनम् - शास्त्रीय-अध्ययनस्य आधुनिक-सन्दर्भे शास्त्राणाम् अनुवादं, व्याख्यानं, वर्णनं च केन्द्रीकृत्य, उच्च-गुणवत्तायुक्तं संशोधनार्थं आवश्यकं संसाधनसाहाय्यं च प्रदातुं, छात्रान् व्यापक-संशोधने प्रोत्साहनकर्तुम् च।
- संस्कृतभाषायां स्पर्धाः - प्रादेशिक-राज्य-राष्ट्रिय-स्तरेषु संस्कृतभाषायाः तत्सम्बद्धेषु विषयेषु च स्पर्धाणाम् आयोजनं, यस्य उद्देश्यं संस्कृतभाषायाः अभिरुचिम् उद्दीष्टुं, उत्कृष्टप्रतिभाः च अभिज्ञातुं वर्धयितुं च।
- शास्त्रीय-संस्कृतस्य विकासः-भारतीयशिक्षानीतेः समकालीनसामाजिकावश्यकतानां च अनुगुणं शास्त्रीय-संस्कृतस्य विकासार्थम्, येन आधुनिकविश्वे शास्त्रीय-संस्कृतस्य उन्नतिः विकासः च निरन्तरं भवेदिति सुनिश्चितीकरणम्।